संकट मोचन गुरु गुण स्त्रोत
मुझ पापी
को तरना , हु अवगुण की खान ।
विनती बारम्बार है
, देना सम्यक ज्ञान
।।
सन्मति
दाता सबके त्राता
,
गुरु
गुण गता बलिहारी
।
चर कहलाता , चरने आता
मन मुद पाता जयकारी ।
असत्य
निवारी , समकित धरी
आनंदकारी उपकारी
।
राजेंद्र सुरिन्दा , हो सुखकंदा
पूनम चंदा
जग हितकरी
जिनगुण रागा, उर में जगा ।
दुःख सब भगा , लख उपकारी ।
कुछ नही लेता बन कर नेता ।
शिक्षा देता , विश्व विहारी ।
जप
- तप करके , समता
धर के
संयम
वर के आतमतारी।
राजेंद्र सुरिन्दा
, हो सुखकंदा
पूनम चंदा जग हितकरी
भावुक ध्यावे , वांछित पावे ,
कमला आवे , बिन उपचारी ।
संकट जावे
, भय मिट जावे
पुत्र खिलाता
, मिल नर-नारी
तन-सुख पावे,
आभय जावे
किन्नर गावे गुरु
उपकारी ।
राजेंद्र सुरिन्दा , हो सुखकंदा
पूनम चंदा
जग हितकरी
स्मरण
करता , नित्य तुम्हारा
कभी
न डरता , वह संसारी ।
अरिमिति बन जावे , जनमन भावे ,
इज्जत पावे , बन व्यवहारी ।
विधा के स्वामी
, अंतर्यामी
जन विश्रामी , मुझ
तरीतारी ।
राजेंद्र सुरिन्दा , हो सुखकंदा
पूनम चंदा
जग हितकरी
केशर माताहारी, दें
तुम्हरी
गुण
मणि जनि , जग हितकारी
जिन शासन के प्रहरी बनके
उन्नति करके
, जीवन तरी ।
सूरी यतीन्द्र , यति पति इन्दा
हर भव फंदा , विन्दति उधारी ।
राजेंद्र सुरिन्दा , हो सुखकंदा
पूनम चंदा
जग हितकरी
विधा
सूरी यतीन्द्र गुरु,
आप महान कृपाल
परम
स्त्रोत पढ़े नित्य
जो , घर - घर मंगल माल
।।